नाम एक फ़नकार अनेक

नाम एक फ़नकार अनेक इस सीरीज़ के चौथे भाग में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कुछ ऐसे मिलते जुलते नामों का ज़िक्र करेंगे जिनके बारे में एक समय में तो काफ़ी उलझन रहती थी बल्कि जिन्हें नहीं मालूम वो आज भी ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे नामों में संगीतकार नौशाद और नाशाद के अलावा हाफ़िज़ ख़ान मस्ताना और हफ़ीज़ ख़ान भी शामिल हैं।

नाम एक फ़नकार अनेक – नौशाद vs नाशाद

नाशाद

1955 की फ़िल्म बारादरी के गीत आपने सुने होंगे उन्हें सुनकर संगीतकार नौशाद का नाम ज़हन में आता है क्योंकि म्यूजिक का स्टाइल एकदम वही है। लेकिन फ़िल्म बारादरी का संगीत दिया नाशाद ने। उनका असली नाम था शौकत अली हैदरी और शुरुआत में उन्होंने कभी शौकत हैदरी, कभी शौकत देहलवी, कभी शौकत अली  के नाम से संगीत दिया। इन्हीं नामों से 40 के दशक में उनकी “दिलदार”, ‘सुहागी”, “टूटे तारे” जैसी कई फ़िल्में आईं। 1950 के दशक में उन्हें लेखक-निर्माता-निर्देशक जे. नक्शब की फ़िल्म “नग़मा” मिली, फिर जे. नक्शब ने ही उन का नाम बदल कर नाशाद कर दिया।

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नाम बदलने का मक़सद था, नामों में कंफ्यूजन क्रिएट करके अपनी फ़िल्म का फ़ायदा करवाना, जो कि हुआ भी। क़िस्सा यूँ है कि पहले जे. नक्शब ने संगीतकार नौशाद से ही संपर्क किया था क्योंकि 50 के दशक में सबसे मशहूर संगीतकारों में से एक नाम संगीतकार नौशाद का था। मगर नौशाद ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, इस बात पर J नक्शब को बहुत ग़ुस्सा आया और उन्होंने उनके नाम को भुनाने के लिए उनसे मिलता जुलता नाम शौकत हैदरी के लिए चुना ताकि confusion में ही सही लोग उनकी फ़िल्म देखने के लिए सिनेमा हॉल तक जाएँ, उसके गाने सुने।

“नग़मा” का म्यूजिक उस समय काफी चला भी, उसके कई गाने उस समय मशहूर हुए। इनमें शमशाद बेगम का गाया हुआ “बड़ी मुश्किल से दिल की बेक़रारी को क़रार आया” काफ़ी चला था। इसी कामयाबी के साथ शौकत अली हैदरी हमेशा के लिए बन गए नाशाद। “नग़मा” फ़िल्म के गीतों को लेकर लोगों को confusion हुआ या नहीं लेकिन 1955 में आई “बारादरी” के संगीत को लेकर आज तक लोगों में ये भ्रम है कि इसका संगीत नौशाद ने दिया है।

नाम एक फ़नकार अनेक

बारादरी फ़िल्म के गीत “तस्वीर बनाता हूं तस्वीर नहीं बनती” और “भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना ज़माना ख़राब है दग़ा नहीं देना जी दग़ा नहीं देना”, “जिया मोरा डोले, हाय पिया पिया बोले, हो न जाऊं कहीं बदनाम”, और “आई बैरन बहार किए सोलह-सिंगार पिया आजा” बहुत मशहूर हुए। लेकिन जब ये रेकॉर्ड्स रिलीज़ हुए तो लोगों को लगा कि ज़रुर नाम छपने में कोई ग़लती हुई है, संगीत नौशाद ने ही दिया है। वाक़ई इन गानों पर संगीतकार नौशाद की छाप दिखती है।

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वो कहते हैं न अगर आपकी क़िस्मत में कुछ नहीं है तो चाहे जितने जतन कर लो वो आपको नहीं मिलेगा, यही दुर्भाग्य रहा नाशाद का। “जवाब”, “सबसे बड़ा रुपैया, “ज़िंदगी या तूफ़ान”, “प्यार की दास्तान”, “रूपलेखा” जैसी कितनी ही फ़िल्मों में अत्यंत मधुर संगीत देकर भी वो नौशाद नाम के बड़े पेड़ की छाया में दब गए। लेकिन उन्होंने ख़ुद भी उस छाया से निकलने की कोशिश नहीं की। उनके 8 बेटे और सात बेटियाँ हुईं और उनके लगभग सभी बेटों ने अपने पिता का फ़िल्मी नाम ही बतौर सरनेम अपनाया “नाशाद”

नाम एक फ़नकार अनेक – हाफ़िज़ ख़ान मस्ताना Vs हफ़ीज़ ख़ान

एक बहुत बड़ी उलझन अक्सर हफ़ीज़ ख़ान नाम को लेकर होती है। क्योंकि जब आप 40s 50s की सिनेमा हिस्ट्री पढ़ते हैं तो कहीं नाम मिलता है हाफ़िज़ ख़ान, कहीं हफ़ीज़ ख़ान, कहीं ख़ान मस्ताना और कहीं हफ़ीज़ ख़ान मस्ताना। कई बार पता ही नहीं चलता कि ये दो व्यक्ति हैं या तीन या एक ही व्यक्ति को अलग-अलग नाम दे दिए गए हैं। इस उलझन को भी दूर करने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले तो मैं बता देना चाहती हूँ कि ये एक ही नाम के दो अलग-अलग व्यक्ति हैं।

हाफ़िज़ ख़ान मस्ताना (नाम एक फ़नकार अनेक )

एक हैं हाफ़िज़ ख़ान जो फ़िल्मों में गाते भी थे, संगीत भी देते थे और कुछ फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया है। उनके मस्तमौला व्यवहार को देखते हुए संगीतकार मीर साहब ने उन्हें “मस्ताना” उपनाम दे दिया था। और ये नाम उनकी असली पहचान छुपाने के काम भी आया। क्योंकि उनका सम्बन्ध संगीत के एक प्रतिष्ठित इटावा घराने से था। उनके पिता उस्ताद वाहिद ख़ान को फ़िल्मों में काम करना बिल्कुल पसंद नहीं था।

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उन्होंने हाफ़िज़ ख़ान को सितार सीखने के लिए कलकत्ता भेजा था। लेकिन उन्हें फिल्म म्यूज़िक में ज़्यादा रूचि थी तो 1930s में वो बम्बई आ गए और 1938 में आई “बहादुर किसान” में उन्होंने एक गाना गाया। फिल्म के संगीतकार थे मीर साहब, उन्होंने ही हफ़ीज़ ख़ान को मिनर्वा मूवीटोन में नौकरी दिलाई और “मस्ताना” नाम दिया। और क्योंकि वो अपने पिता से छुपकर फ़िल्मों में गा रहे थे इसीलिए फ़िल्मी परदे पर बतौर सिंगर उन्होंने अपना नाम दिया ‘ख़ान मस्ताना’। जिन्होंने फ़िल्मों में 130 से ज़्यादा गाने गाए।

  • हम अपने दर्द का क़िस्सा सुनाए जाते हैं – मुक़ाबला (1942) – अभिनेता गायक संगीतकार – खान मस्ताना
  • कैसा प्यारा जीवन हमारा – भूल न जाना (1947) – गायक संगीतकार – ख़ान मस्ताना, शबनम
  • किसी को हाल हम अपना सुना नहीं सकते – भँवर (1947) – गायक संगीतकार – खान मस्ताना
  • वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों – शहीद (1948) – गायक – मौ रफ़ी खान मस्ताना

नाम एक फ़नकार अनेक

इन्हीं ख़ान मस्ताना ने जब 40 के दशक में फ़िल्मों में संगीत देना शुरु किया तो अपना असली नाम दिया हाफ़िज़ ख़ान। इस नाम से उन्होंने क़रीब 22 फ़िल्मों में संगीत दिया।

  • 1940 वसीयत
  • 1940 वर्जीनिया
  • 1941 अकेला
  • 1941 सर्कस की सुंदरी
  • 1941 मेरे साजन
  • 1942 मुक़ाबला
  • 1942 राजा रानी
  • 1943 राहगीर
  • 1943 राजा
  • 1943 तलाश
  • 1944 शरारत
  • 1944 टैक्सी ड्राइवर
  • 1945 नीलम
  • 1945 वीर कुणाल
  • 1946 एयर मेल
  • 1946 भेदी दुश्मन
  • 1947 भंवर
  • 1947 भूल ना जाना
  • 1947 एक्स्ट्रा गर्ल
  • 1948 आज का फरहाद
  • 1949 रूप लेखा
  • 1953 गुनेहगार

संगीत देने और गीत गाने के अलावा उन्होंने 9 फ़िल्मों में अभिनय भी किया।

  • 1934 – डिवॉर्स
  • 1940 – मैं हारी
  • 1942 – मुक़ाबला
  • 1942 – उजाला
  • 1943 – हंटरवाली की बेटी
  • 1943 – राहगीर
  • 1943 – वकील साहब
  • 1947 – शिकारपुरी
  • 1964 – चार दरवेश

1964 में आई चार दरवेश की एक क़व्वाली में ख़ान मस्ताना के साथ-साथ मास्टर निसार और वज़ीर मोहम्मद ख़ान भी नज़र आए। एक समय था जब ख़ान मस्ताना उर्फ़ हाफ़िज़ ख़ान के पास बम्बई में 5 फ़्लैट्स थे, कई कारें थीं लेकिन जब बुरा वक़्त आया तो सब कुछ बिक गया। उन्हें उनके आख़िरी वक़्त में माहिम मस्जिद पर भीख मांगते हुए देखा गया।

हफ़ीज़ ख़ान ( नाम एक फ़नकार अनेक)

नाम एक फ़नकार अनेक

अब बात करते हैं दूसरे हफ़ीज़ ख़ान की जो सिर्फ़ म्यूजिक कंपोज़र थे। उनकी पहली फ़िल्म थी 1945 में आई ज़ीनत, इसमें उन्होंने और मीर साहब ने संगीत दिया था। और बैकग्राउंड म्यूजिक दिया रफ़ीक़ ग़ज़नवी ने।  हफ़ीज़ ख़ान ने इस फ़िल्म में 4 गीत कंपोज़किये थे। उनके संगीत से सजी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं –

  • 1945 – ज़ीनत
  • 1946 – हमजोली
  • 1950 – मेहरबानी
  • 1954 – लकीरें
  • 1957 – मेरा सलाम
  • 1960 – शरीफ़ डाकू

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सिनेमा का इतिहास 100 साल से भी ज़्यादा पुराना है और इन सालों में बहुत से कलाकारों फ़नकारों ने अपना हुनर दिखाया। लेकिन इन सालों में बहुत से लोगों की पहचान मिट भी गई है क्योंकि उस दौर की फ़िल्में या उनसे जुड़ी जानकारी अब उपलब्ध नहीं है। जो उपलब्ध है उसे लेकर भी संशय की स्थिति बनी रहती है, किसी का क्रेडिट किसी और के हिस्से में चला जाता है और ग़लतफ़हमी बढ़ रही है। ऐसा न हो इसीलिए नाम एक फ़नकार अनेक सीरीज़ शुरु की है।