मीना कुमारी के जन्मदिन पर उनकी ज़िंदगी के कुछ निजी पन्नों को आपसे साझा कर रही हूँ। वो दर्द जिन्होंने मीना कुमारी को असल ज़िंदगी में भी ट्रेजेडी क्वीन बनाया।
मीना कुमारी ने पारम्परिक भारतीय नारी के किरदार को परदे पर इतनी सच्चाई और गहराई से निभाया कि वही उनकी पहचान बन गया। अपनों द्वारा ठुकराई हुई विवश नारी का किरदार हो या समाज द्वारा उत्पीड़ित, मानसिक यंत्रणाएँ सहती स्त्री का चरित्र। उन्होंने हर पात्र को बहुत ही सहजता से अमर कर दिया, अपनी दर्द भरी आवाज़ और अपने जानदार अभिनय के कारण वो कहलाईं-ट्रेजेडी क्वीन।
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मीना कुमारी का आज जन्मदिन है और जन्म के साथ ही जो नाम उन्हें मिला, वो था – माहजबीं लेकिन उनकी छोटी आँखों की वजह से घरवाले उन्हें चीनी कहकर पुकारते थे। सिल्वर स्क्रीन पर उनके जानदार अभिनय ने उन्हें ट्रेजेडी क्वीन का ख़िताब दिलाया। शादी के बाद वो पुकारी गईं मंजू के नाम से और जब उन्होंने अपनी ज़िंदगी के तजुर्बात को शायरी का लिबास पहनाया तो अपना उपनाम रखा-नाज़।
मीना कुमारी का बचपन
मीना कुमारी की ज़िंदगी का सफ़र शुरु हुआ 1 अगस्त 1932 को। उनके पिता थिएटर एक्टर और म्यूज़िक टीचर थे और माँ एक डाँसर। माँ की बीमारी और पिता की बेरोज़गारी के कारण उन्हें 4 साल की छोटी सी उम्र में ही फ़िल्मों का रुख़ करना पड़ा। विजय भट्ट की “लैदर फेस” उनकी पहली फिल्म बनी। उसी फ़िल्म से उन्हें नाम मिला बेबी मीना। बेबी मीना ने काफ़ी चर्चित फ़िल्में कीं और नाम-दाम दोनों कमाए। लेकिन बचपन खोने का दुःख उन्हें ताउम्र सालता रहा।
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उसी दौर का एक वाक़या है – एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी जिसमें उन्हें अपने पिता को पुकारना था पर वो इतनी छोटी थीं कि अभिनय क्या होता है इसका एहसास ही नहीं था वो बस यही कहती रहीं की ये तो मेरे बाबूजी नहीं हैं। बचपन में वो स्कूल जाना चाहती थीं पर जाना पड़ा स्टूडियो की तेज़ लाइट्स के बीच काम करने। और यही वजह रही की जब भी कोई अपने बच्चों को फ़िल्मों में काम दिलाने लाता था तो उन्हें बहुत बुरा लगता था।
मीना कुमारी जिन्हें ट्रेजेडी क्वीन का ख़िताब दिया गया। अगर ये ख़िताब न भी दिया जाता तो भी उनकी पूरी ज़िंदगी एक दुखद कहानी है जिसकी शुरुआत भी ट्रेजेडी से हुई और अंत भी। ज़िंदगी ने जब भी ख़ुशी की झलक दिखाई वो बस एक झलक ही रह गई। आप कह सकते हैं कि ख़ुशी की चादर ओढ़ कर ग़म उनकी ज़िंदगी में आते चले गए।
जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वो डॉक्टर की फीस दे सकें, उनके पिता उन्हें दरवाज़े पर छोड़कर चले गए थे मगर शायद दिल ने गवाही नहीं दी इसलिए कुछ घंटों बाद लौटे और उन्हें अपने साथ ले गए।
उनके पिता थिएटर एक्टर और म्यूज़िक टीचर थे और माँ एक डाँसर। माँ की बीमारी और पिता की बेरोज़गारी के कारण उन्हें 4 साल की छोटी सी उम्र में ही फ़िल्मों का रुख़ करना पड़ा। विजय भट्ट की “लैदर फेस” उनकी पहली फिल्म बनी। उसी फ़िल्म से उन्हें नाम मिला बेबी मीना। बेबी मीना ने काफ़ी चर्चित फ़िल्में कीं और नाम-दाम दोनों कमाए। लेकिन बचपन खोने का दुःख उन्हें ताउम्र सालता रहा। वो स्कूल जाना चाहती थीं पर जाना पड़ा स्टूडियो की तेज़ लाइट्स के बीच काम करने। और यही वजह रही कि जब भी कोई अपने बच्चों को फ़िल्मों में काम दिलाने लाता था तो उन्हें बहुत बुरा लगता था।
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विजय भट्ट की ही “बैजू बावरा” वो फ़िल्म थी जिसने अदाकारा के रूप में मीना कुमारी को शोहरत दिलाई। “परिणीता”, “शारदा”, “आरती”, “एक ही रास्ता”, “फूल और पत्थर”, “दिल अपना और प्रीत पराई”, “दिल एक मंदिर”, “काजल”, “साहिब बीबी और ग़ुलाम”, “बहु बेगम” और “पाकीज़ा” जैसी फ़िल्मों ने उन्हें “ट्रेजेडी क्वीन” का ख़िताब दिलाया।
निजी ज़िंदगी में मीना कुमारी को कभी वो ख़ुशी नहीं मिली जिसकी वो हक़दार थीं। उनके इर्द-गिर्द जो माहौल था उसमें जज़्बात से ज़्यादा पैसे की क़ीमत थी। और शायद यही वजह थी कि उन्हें कभी दौलत ने आकर्षित नहीं किया। उनके रूपए-पैसे का हिसाब-किताब हमेशा दूसरे ही रखते रहे।
मोहब्बत, शादी, और अपमान
वो 18-19 साल की थीं जब उन्होंने 32 साल के कमाल अमरोही से शादी की। जबकि कमाल अमरोही पहले ही दो शादियाँ कर चुके थे और तीन बच्चों के पिता थे। उन दोनों की पहली मुलाक़ात कराई थी अशोक कुमार ने, तब तक मीना कुमारी बहुत बड़ी स्टार नहीं बनी थीं। एक दिन कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को अपनी एक फिल्म “अनारकली ” में बतौर हेरोइन साइन किया लेकिन उसी दौरान मीना कुमारी का एक्सीडेंट हो गया। जब कमाल अमरोही को पता चला कि उनकी फ़िल्म की हेरोइन का एक्सीडेंट हो गया है तो वो तुरंत उनसे मिलने पहुंचे। ये मई 1951 की बात है।
एक्सीडेंट बहुत भयानक था इसलिए मीना कुमारी के हाथों से कई फिल्में निकल गईं और वो कुछ हद तक डिप्रेशन में आ गई थीं। जब कमाल अमरोही उनसे मिलने पहुँचे तो मीना कुमारी ने उनसे कहा कि “अभी तो आप भी मुझे निकाल दोगे न ?” लेकिन कमाल अमरोही ने उनकी कलाई पर अपनी उँगलियों से लिखा – “मेरी अनारकली” मतलब साफ़ था कि वो उनके ठीक होने का इंतज़ार करेंगे। इस तरह एक प्रेम कहानी का आग़ाज़ हुआ।
मीना कुमारी चार महीने अस्पताल में रहीं और इस दौरान कमाल अमरोही उनसे मिलने अस्पताल जाते रहे और जब लगा कि एक मुलाक़ात से बात नहीं बन पा रही है तो दोनों ने एक दूसरे को ख़त लिखना शुरू कर दिया। जब अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो रात भर फ़ोन पर बात करने का सिलसिला शुरु हो गया। दोनों के बीच मोहब्बत बढ़ती जा रही थी।
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उनकी इस मोहब्बत की ख़बर मीना कुमारी के अब्बा तक भी पहुँचीं, और वो नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी इतनी छोटी उम्र में दो शादियां कर चुके एक शख़्स से शादी करे। कुछ लोगों का कहना ये भी है कि अगर मीना कुमारी शादी करके चली जातीं तो उनके साथ-साथ उनकी इनकम भी जाती। मगर दोनों ने फैसला कर लिया था इसलिए चुपचाप शादी करने का इंतज़ाम किया गया।
एक्सीडेंट के बाद मीना कुमारी को एक मसाज क्लिनिक जाना पड़ता था, उनके पिता उन्हें उनकी बहन के साथ वहाँ ड्रॉप करते थे और दो घंटे बाद आकर ले जाते थे। 14 फरवरी 1952 को भी जब वो अपनी दोनों बेटियों को वहाँ छोड़ कर गए तो दोनों बहनें कमाल अमरोही के पास पहुँचीं जहाँ क़ाज़ी साहब पहले से मौजूद थे और फिर उन दोनों का गुपचुप निकाह हो गया। निकाह के बाद दोनों वापस क्लिनिक और फिर अपने पिता के साथ घर लौट आईं। उसी दौरान कमाल अमरोही ने उन्हें लेकर दायरा फ़िल्म बनाने की योजना बनाई।
मीना कुमारी के पिता नहीं चाहते थे कि वो कमाल अमरोही के साथ किसी भी तरह का रिश्ता रखें। उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर वो इस रास्ते पर चलेंगी तो उनके घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो जाएँगे। लेकिन मीना कुमारी ने फ़िल्म दायरा की शूटिंग शुरु कर दी। जब उनके पिता को पता चला कि उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मीना कुमारी ने “दायरा” की शूटिंग शुरु कर दी है तो उस रात जब मीना कुमारी घर पहुँची तो उनके पिता ने दरवाज़ा ही नहीं खोला। और तब वो सीधे अपने पति के घर रहने चली गईं, इसके बाद ही पूरी दुनिया को उनकी शादी की ख़बर लगी।
ये वक़्त मोहब्बत में वक़्ती जूनून का था, दोनों ने एक दूसरे को प्यार के नाम भी दे दिए थे मीना कुमारी उन्हें “चन्दन” कहकर पुकारती और कमाल अमरोही उन्हें “मंजू” कहकर बुलाते। दोनों एक ख़याली दुनिया में जी रहे थे, जो जल्दी ही बिखरने वाली थी। “दायरा” बनी भी और बुरी तरह फ़्लॉप भी हो गई, उधर “बैजू बावरा” की रिलीज़ के बाद मीना कुमारी सुपर स्टार बन गई थीं और उन्हें लगातार अच्छे ऑफर्स आ रहे थे, मगर शादी के बाद मीना कुमारी पर कई तरह की बंदिशें लगा दी गईं।
उनके काम करने को लेकर कमाल अमरोही की कई शर्तें थीं। पहली शर्त तो ये थी कि वो शाम 6 बजे के बाद शूटिंग से घर लौट आएँगी। दूसरी शर्त थी कि किसी को-स्टार से लिफ़्ट नहीं लेंगी, और तीसरी शर्त ये कि उनके मेकअप रूम में कोई को-स्टार प्रवेश नहीं करेगा। मीना कुमारी पिता की ग़ुलामी की ज़ंजीरों से निकली तो पति के हाथों की कठपुतली बन कर रह गईं।
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यहाँ तक भी ठीक होता, लेकिन जब इतनी बंदिशों के साथ जब मीना कुमारी ने काम करना शुरु किया तो कमाल अमरोही का सेक्रेटरी बाक़र जासूस बनकर हमेशा सेट पर मौजूद रहता और उन पर कड़ी नज़र रखता। यहाँ तक कि उनके पैसों का हिसाब-किताब भी वही रखता। मीना कुमारी की हर फ़िल्म में कमाल अमरोही का पूरा दख़ल रहता। मीना कुमारी अपने करियर में ऊँचाइयों को छू रही थीं, कहा जाता है कि कमाल अमरोही का मेल ईगो ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि लोग उन्हें उनकी बीवी के नाम से जाने।
एक बार की बात है एक फ़िल्म के प्रीमियर पर सोहराब मोदी ने महाराष्ट्र के गवर्नर से उन दोनों का परिचय कराया। उन्होंने कहा – “ये हैं मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी और ये हैं उनके पति कमाल अमरोही” इससे पहले कि कोई और बात शुरु होती कमाल अमरोही ने उन्हें टोका और कहा – “नहीं, मैं हूँ कमाल अमरोही और ये हैं मेरी पत्नी प्रतिष्ठित अभिनेत्री मीना कुमारी।”
ये तो एक वाक़्या था ऐसे न जाने कितने वाक़ये होंगे जिनकी वजह से ईगो पर बात बन आई होगी। और जब अहम् टकराते हैं और ज़िंदगी कभी बेहतर रास्ते पर नहीं जाती। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ कमाल अमरोही मीना कुमारी पर हाथ भी उठाते थे। अभिनेत्री नरगिस ने ख़ुद एक घटना का ज़िक्र किया था।
जब वो लोग एक शूटिंग के सिलसिले में मद्रास में थे तो उन्होंने एक रात होटल के गार्डन में मीना कुमारी को बुरी हालत में देखा, जब उन्होंने पूछा तो मीना कुमारी टाल गईं। नरगिस का शक़ उस वक़्त यक़ीन में बदल गया जब उन्होंने होटल के कमरे के अंदर से ऐसी आवाज़ें सुनी जिनसे वॉयलेंस का पता चलता था। उन्होंने कमाल अमरोही के सेक्रेटरी को आड़े हाथों लिया मगर बाक़र की इतनी हैसियत थी कि उसने कहा – “जब सही वक़्त आएगा हम उन्हें आराम दे देंगे।” क्या किसी सेक्रेटरी की इतनी हिम्मत हो सकती है ? लेकिन उस व्यक्ति की हिम्मत और उसका दख़ल ज़रुरत से ज़्यादा था।
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मार्च 1964 की बात है मीना कुमारी की फ़िल्म “पिंजरे के पंछी” की शूटिंग फ़िल्मिस्तान स्टूडियो में चल रही थी। हमेशा की तरह बाक़र उन पर कड़ी नज़र रखे हुए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ उस दिन गुलज़ार साब को कुछ डिस्कस करना था तो मीना कुमारी ने उन्हें अपने मेकअप रुम में बुला लिया। बाक़र ने अंदर जाकर उन्हें वहाँ से निकल जाने को कहा जब मीना कुमारी ने उसे रोका तो उसने उन्हें थप्पड़ मारा। ये उनके सब्र की इंतहा थी। उन्होंने बाक़र से कहा – कमाल साहब से कह देना मैं घर नहीं आऊँगी। और वो शूटिंग से सीधे अपनी बहन मधु के घर चली गईं जिनकी शादी महमूद के साथ हुई थी।
उन्हें उम्मीद थी कि इस घटना के बारे में सुनकर कमाल अमरोही बाक़र को निकाल बाहर करेंगे। मगर जब उन्होंने कमाल अमरोही को सारी बात बताई तो उनके जवाब से उन्हें सदमा लगा। उन्होंने कहा – “तुम घर आ जाओ, फिर बात करेंगे” उनके लिए पत्नी की इज़्ज़त से ज़्यादा अहमियत अपने सेक्रेटरी की थी।अब कुछ बाक़ी नहीं रह गया था। इसके बाद मीना कुमारी कभी कमाल अमरोही के पास वापस नहीं गईं।
क़रीब 10 साल हर तरह की पाबन्दी झेलने और टॉर्चर सहने के बाद मीना कुमारी आज़ाद थीं, मगर उन्होंने कमाल अमरोही से प्यार किया था था और अपने प्यार की दुनिया उजड़ जाने पर उनके पास जीने की कोई वजह नहीं बची थी। डॉक्टरों के कहने पर वो पहले से ही दवा के तौर पर ब्रांडी लिया करती थीं अब नशा उनकी आदत बन गया था। इसी नशे के कारण उन्हें लिवर सिरोसिस हुआ और 31 मार्च 1972 को वो अपनी तन्हा ज़िंदगी को अलविदा कह गईं। उनकी मौत पर नरगिस ने कहा था – मीना, तुम्हें मौत मुबारक़ हो !
धर्मेंद्र से रिश्ता
कमाल अमरोही से अलग होने के बाद मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जुड़ा इसमें कितनी कहानियाँ सच हैं और कितनी अफ़वाह ये नहीं कहा जा सकता। हाँ धर्मेंद्र के साथ उनके रिश्तों को के बारे में कई मीडिया रिपोर्ट्स हैं जो साबित करती हैं कि उनके और धर्मेंद्र के बीच एक गहरा रिश्ता था। ख़ुद धर्मेंद्र भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके करियर को आगे बढ़ने में मीना कुमारी का काफ़ी योगदान रहा है। क्योंकि जब धर्मेंद्र इंडस्ट्री में आये थे तब तक मीना कुमारी एक बड़ा नाम बन चुकी थीं।
अपने पति से अलग होने के बाद मीना कुमारी कुछ वक़्त के लिए धर्मेंद्र के क़रीब आ गई थीं। इन बातों की पुष्टि उन ख़बरों से होती है जो उस समय के अख़बारों की सुर्खियाँ बनी। एक बार धर्मेंद्र एक फ़िल्म के प्रीमियर के लिए दिल्ली आए हुए थे, उन्होंने जम कर शराब पी हुई थी। वापस मुंबई जाते हुए अधिकारियों ने उन्हें हवाई अड्डे पर जाने नहीं दिया और तब धर्मेंद्र ने नशे में चिल्ला कर कहा था – [But I must get back to Bombay. I must… Meena is waiting for me.” ] “लेकिन मुझे बंबई वापस जाना होगा। मुझे जाना ही होगा, मीना मेरा इंतजार कर रही है।”
एक बार मीना कुमारी अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर गई थीं, वहाँ धर्मेंद्र भी मौजूद थे। लेकिन वापसी में जब सब अपनी अपनी गाड़ियों में बैठे तो धर्मेंद्र ग़लती से दूसरी कार में बैठ गए। इस बात से मीना कुमारी बहुत ग़ुस्से में आ गई थीं। घबराहट में वो चिल्ला-चिल्ला कर कहती रहीं – “मेरा धर्म कहाँ है? मेरा धर्म कहाँ है?” आमतौर पर माना जाता है कि उनका रिश्ता 3 साल चला लेकिन असल में धर्मेंद्र के साथ उनका अफ़ेयर सिर्फ़ 3 महीने ही चला।
पाकीज़ा
पाकीज़ा वो सपना था जो कमाल अमरोही और मीना कुमारी ने अपने अच्छे दिनों में साथ मिलकर देखा था। लेकिन इसके बजट, और फिर दोनों के बीच की अनबन के कारण इसे बनने में 14 साल लग गए। जिन दिनों मीना कुमारी बहुत ज़्यादा बीमार हुईं और थोड़ी तबियत सँभालने पर वापस लौटीं, उन्हीं दिनों कमाल अमरोही ने उनसे पाकीज़ा पूरी करने की गुज़ारिश की।
ग़ुलाम मोहम्मद का बेजोड़ संगीत, कमाल अमरोही के लाजवाब संवाद, भव्य सेट्स और सभी कलाकारों का बेमिसाल अभिनय। इन सबने मिलकर फ़िल्म को कला की ऊँचाइयो तक पहुँचा दिया था। जब फ़िल्म दुबारा शुरू हुई तो मीना कुमारी की सेहत बेहद खराब थी। ज़िंदगी से मिले धोखों और शराब ने सब कुछ तहस-नहस कर डाला था। वो इतनी कमज़ोर हो गई थीं कि नाचते नाचते बेदम हो जाती।
तबियत जब ज़्यादा बिगड़ गई तो फ़िल्म का आख़िरी नृत्य पद्मा खन्ना से कराया गया और उनके सिर्फ़ क्लोज़-अप डाले गए। आख़िरकार 4 फ़रवरी 1972 को फ़िल्म रिलीज़ हुई, पर उस समय दर्शकों की प्रतिक्रिया कुछ ख़ास नहीं थी। लेकिन मीना कुमारी की मौत की ख़बर के साथ ही फ़िल्म देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। आख़िर मीना कुमारी जैसे कलाकार का जाना न सिर्फ़ फिल्म इंडस्ट्री के लिए बल्कि उनके चाहने वालों के लिए भी एक सदमा था।
ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी आज हमारे बीच नहीं हैं , पर अपनी बेमिसाल ख़ूबसूरती, बेजोड़ अभिनय, अपनी शायरी और दर्द भरी जादुई आवाज़ के लिए वो हमेशा हमेशा याद की जाती रहेंगी। मीना कुमारी सिर्फ़ एक ही थीं, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने अपनी जो जगह बनाई, वो जगह कभी कोई और नहीं ले पायेगा।
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