लीना चंदावरकर 60 -70 के दशक की वो हेरोइन रही हैं जिनके चेहरे की मासूमियत ने सबका दिल जीता। आज उनके जन्मदिन पर उनके जीवन की कुछ बातें, कुछ यादें बाँट रही हूँ।
लीना चंदावरकर का जन्म 29 अगस्त 1950 को कर्नाटक के धारवाड़ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। लीना चंदावरकर को फिल्में हमेशा आकर्षित करती थीं। मीना कुमारी उनकी पसंदीदा अभिनेत्री थीं, उनकी फिल्में देखकर उनके मन में भी अभिनेत्री बनने का ख्याल आया। फ़िल्मफ़ेयर मैगज़ीन में एक कांटेस्ट का फॉर्म देखकर उन्होंने अपने पिता श्रीनाथ चंदावरकर जो आर्मी में ऑफिसर थे, उनके सामने अपनी इच्छा ज़ाहिर की मगर उनके पिता ने साफ़ इंकार कर दिया। इस पर विरोध जताते हुए लीना चंदावरकर ने अपनी सारी किताबें गराज में फ़ेंक दीं और साफ़ कह दिया कि वो भी SSC की परीक्षा में नहीं बैठेंगी।
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उस वक़्त लीना चंदावरकर सिर्फ़ 15 साल की थीं, आख़िरकार उनके पिता मान गए और उन्होंने उस टैलेंट हंट के लिए अप्लाई कर दिया था। ये वही कॉंटेस्ट था जिसमें राजेश खन्ना और फ़रीदा जलाल ने भी हिस्सा लिया था और उन दोनों ने ये कांटेस्ट जीता था। लेना चंदावरकर रनर अप रहीं। वो मुंबई आ तो गईं थीं मगर उनकी काम उम्र के कारण उन्हें हेरोइन के रोल्स नहीं मिल रहे थे और बहन के किरदार वो निभाना नहीं चाहती थीं इसलिए उस वक़्त उन्होंने मॉडलिंग शुरू कर दी। ख़ूबसूरत और फोटोजेनिक तो वो थी हीं इसलिए मॉडलिंग असाइनमेंट मिलते रहे मगर फ़िल्मों में डेब्यू करने के लिए उन्हें एक लम्बा इंतज़ार करना पड़ा।
विज्ञापन की वजह से ही लीना चंदावरकर को फ़िल्म में काम करने का मौक़ा मिला
उस समय सुनील दत्त अपने भाई सोमदत्त को लांच करने के लिए एक फ़िल्म बना रहे थे “मन का मीत” जिसके लिए उन्हें हीरोइन की तलाश थी। और उनकी तलाश ख़त्म हुई जब उन्होंने एक विज्ञापन में लीना चंदावरकर को देखा। उन्हें फ़िल्म में बतौर हेरोइन चुन लिया गया, उस फ़िल्म के लिए उन्हें ख़ुद नरगिस दत्त ने ग्रूम किया। उन्होंने लीना जी को पश्चिमी नृत्य सिखाया, गाड़ी चलाने के अलावा हिंदी बोलना भी सिखाया।
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फ़िल्म “मन का मीत” कोई ख़ास नहीं चली, और इससे सोमदत्त को भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ पर लीना चंदावरकर की ख़ूबसूरती ने लोगों का ध्यान ज़रुर खींचा। इसके बाद आई “हमजोली” इस फिल्म ने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। उस फ़िल्म में जीतेन्द्र और लीना चंदावरकर पर बैडमिंटन खेलते हुए जो गाना फ़िल्माया गया था उसे तो लोग आज भी गुनगुनाते हैं – “ढल गया दिन हो गई रात जाने दो जाना है” इसके बाद “महबूब की मेंहदी”, “मैं सुन्दर हूँ”, “अनहोनी”, “मनचली”, “बिदाई”, “बैराग” जैसी फ़िल्मों से लीना चंदावरकर की गिनती टॉप की अभिनेत्रियों में होने लगी।
लीना चंदावरकर को पहली शादी का सुख सिर्फ़ 10 दिन मिला
08 दिसंबर 1975 को लीना चंदावरकर की शादी हुई गोवा के पहले मुख्यमंत्री दयानन्द बंदोडकर के बेटे सिद्धार्थ बंदोडकर से। सिर्फ़ 10 दिन गुज़रे थे कि एक दुर्घटना घट गई, अपनी बन्दूक साफ़ करते हुए सिद्धार्थ बुरी तरह घायल हो गए। क़रीब एक साल तक वो अपनी ज़िंदगी के लिए मौत से जूझते रहे और आख़िर में ये जंग हार गए। 25 साल की उम्र में लीना चंदावरकर विधवा हो गईं। ऐसे में एक बार फिर उनका सहारा बनी फिल्में और फ़िल्मों की वजह से ही उन्हें उनके दूसरे जीवन साथी मिले किशोर कुमार।
एक दिन लीना चंदावरकर के घर किशोर कुमार का ड्राइवर आया और उन्हें किशोर दा का नंबर दे गया। उन्होंने किशोर कुमार को फ़ोन किया, उन्हें किसी फ़िल्म के बारे में डिस्कस करना था। उसके बाद से दोनों में बातचीत शुरु हो गई, पहली शादी की यादों और दुःख से उभरने में किशोर कुमार ने उनकी बहुत मदद की। फिर एक दिन किशोर कुमार ने उन्हें शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया। लेकिन तब तक लीना चंदवरकर किसी और रिश्ते में बंधने के लिए तैयार नहीं थीं। इसलिए उन्होंने मना कर दिया लेकिन एक समय के बाद उन्हें ख़ुद महसूस हुआ कि वो भी किशोर कुमार से मोहब्बत करने लगी हैं। तब उन दोनों ने शादी का फ़ैसला किया।
माता-पिता किशोर कुमार से शादी के ख़िलाफ़ थे
लीना चंदावरकर और किशोर कुमार तो शादी के लिए तैयार थे मगर किशोर कुमार उनके माता-पिता की रज़ामंदी से ही शादी करना चाहते थे। और इस शादी के लिए लीना चंदावरकर के माता-पिता बिलकुल तैयार नहीं थे। एक तो किशोर दा लीना जी से 21 साल बड़े थे और पहले तीन शादियाँ कर चुके थे उनका एक बेटा भी था अमित। पर कहते हैं किशोर दा ने उनके माता पिता के घर के बाहर एक तरह से धरना दे दिया था। और गाने गा गा कर उन्होंने उनके घर के एक एक सदस्य को राज़ी किया।आखिरकार लीना जी के माता पिता राज़ी हुए और उनकी शादी हुई एक बेटा भी हुआ सुमित।
पर 1987 में किशोर कुमार भी चल बसे और लीना चंदावरकर एक बार फिर अकेली रह गईं। किशोर कुमार की मौत के बाद लीना चंदावरकर डिप्रेशन में चली गई थीं। किशोर दा उनकी ताक़त थे उन्हें खोने के बाद उन्हें अपने बेटे तक की सुध नहीं रही थी। उस दौरान उनकी माँ और किशोर कुमार के बड़े बेटे अमित कुमार ने ही उनके बेटे सुमित को संभाला लेकिन जब माँ की मौत हो गई तो अमित कुमार ने उन्हें सच से रु-ब-रु काराया और तब जाकर उनके होश-ओ-हवास क़ायम हुए।
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आमतौर पर हमारे समाज में ऐसा काम ही देखने को मिलता है जब सौतेली माँ और बेटे एक परिवार की तरह रह रहे हों। मगर अमित कुमार जहाँ लीना चंदावरकर को माँ की इज़्ज़त देते आये हैं वहीं लीना चंदावरकर के लिए शुरु से उनके दो बेटे हैं अमित और सुमित। सब एक खुशहाल परिवार की तरह रहते हैं। इन दिनों लीना चंदावरकर पार्टीज या टी वी शोज़ में नज़र आ जाती हैं। सुना है वो जल्दी ही किशोर कुमार के जीवन पर आधारित किसी फ़िल्म का निर्माण भी करने वाली हैं।
उनके जन्मदिन पर आने वाले जीवन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ !
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