जगमोहन

जगमोहन नाम भी उस फ़ेहरिस्त का हिस्सा है जिसे एक जैसे नामों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इस नाम की भी कई हस्तियाँ हैं।

एक जगमोहन वो, जिन्हें “सुर-सागर” टाइटल से नवाज़ा गया था और दूसरे जगमोहन वो जिन्होंने सपन सेनगुप्ता के साथ मिलकर सपन जगमोहन नाम से कुछ फ़िल्मों में संगीत दिया, मगर अक्सर इन दोनों को एक ही व्यक्ति समझ लिया जाता है। लेकिन ये दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं और कंफ्यूज़न की वजह शायद ये है कि दोनों ही संगीत से जुड़ी हस्तियाँ हैं। एक कमाल की बात ये है कि दोनों ने ही फ़िल्मों के लिए बहुत ज़्यादा गीत नहीं गाए हैं।

जगमोहन “सुर-सागर”

जगमोहन “सुर-सागर” का असली नाम था जगनमोय मित्रा। 1937 में उन्होंने ऑल  बंगाल म्यूज़िक कॉम्पीटीशन में हिस्सा लिया तो वहाँ उन्होंने ध्रुपद, टप्पा, ठुमरी, कीर्तन और बाउल गायन में पहला स्थान प्राप्त किया। इस कॉम्पीटीशन और उनकी जीत की ख़बर जब अख़बारों में छपी तो उनके असली नाम ‘जगनमोय’ की जगह उनका नाम ‘जगमोहन’ छप गया, और बाद में वो इसी नाम से जाने गए।

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जगनमोय मित्रा का जन्म 6 सितम्बर 1918 को हुआ था। उनके जन्म से सिर्फ़ 2 महीने पहले उनके पिता गुज़र गए थे इसीलिए उनकी परवरिश उनकी मां और नाना ने की। उनकी रूचि पढ़ाई-लिखाई में बहुत ज़्यादा नहीं थी मगर उन्होंने ब्रिटिश काल में मैट्रिक पास कर लिया था। वो अक्सर अपनी बुआ के घर इलाहबाद जाया करते थे वहां अपने कजिन ब्रदर्स के संग-साथ से उनमें संगीत के प्रति ऐसा लगाव पैदा हुआ जो आख़िर में उनकी पहचान बन गया और अंत तक उनके साथ बना रहा।

बाद में तो उन्होंने ज़मीरुद्दीन ख़ान, मास्टर गामा, कोलकाता के भीष्मदेव चटर्जी, लखनऊ के शम्भु महाराज, और पांडिचेरी के दिलीप कुमार रॉय से संगीत की शिक्षा ली। 1937 में जब उन्होंने बंगाल म्यूजिक कॉम्पीटीशन जीता उसी साल वो All India Radio से बतौर गायक जुड़ गए। 1938 में इलाहाबाद में अखिल भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रतियोगिता हुई, वहाँ भी ख़याल गायकी में उन्हें पहला स्थान मिला। इसके बाद जैसे ये तय हो गया कि वो प्रोफ़ेशनली गायकी में ही आगे बढ़ेंगे और उसी तरह से मौक़े भी मिलने लगे।

जगमोहन

उनके हुनर और प्रसिद्धि को देखते हुए जब HMV ने जगमोहन सुरसागर को गीत रेकॉर्ड करने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होने एक धुन तैयार की, लेकिन उसके लिए सही शब्द उन्हें नहीं मिल पा रहे थे। तब उनके एक मित्र उन्हें बंगाल के प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक काज़ी नज़रुल इस्लाम के पास ले गए। काज़ी नज़रुल इस्लाम उस समय तक अपनी काव्य शैली नज़रुलगीति के लिए बहुत ज़्यादा प्रसिद्धि पा चुके थे। उन्होंने जगमोहन से कई बार वो धुन सुनी और फिर उसी समय, उन्होने एक बंगला गीत लिख कर दे दिया।

उस गीत को जगमोहन सुर-सागर की आवाज़ में HMV ने रिकॉर्ड किया। उनका गाया ये पहला गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ, और इसके हज़ारों रिकार्ड्स बिके, उन रिकार्ड्स पर उनका असली नाम छपा था – जगनमोय मित्रा। उस गीत के बोल हैं – “शाओनो राते जदी”, HMV ने ही 1938 में उनका पहला हिंदी गीत रिलीज़ किया। उस गीत के बोल हैं – मुझे न सपनों से बहलाओ। इसके बाद उनके बहुत से ग़ैर-फ़िल्मी गीतों के रिकॉर्ड HMV ने निकाले, जिससे जगमोहन पूरे भारत में मशहूर हो गए।

जगमोहन सुर-सागर की ये शोहरत फ़िल्मकारों तक भी पहुँची और फिर शुरू हुआ फ़िल्मी गायकी का सफ़र जो 1941 से शुरु हुआ और 1950 तक चला। इस दौरान उन्होंने कई मशहूर फ़िल्मों में गीत गाए मगर उस समय रिकार्ड्स पर गायक-गायिकाओं की जगह फ़िल्म में अभिनेता – अभिनेत्रियों के किरदार का नाम छपता था इसलिए बहुत से रिकार्ड्स पर जगमोहन का नाम नहीं मिलता। शायद इसीलिए आज की पीढ़ी तो छोड़िए दो दशक पहले की पीढ़ी भी उनके बारे में ज़्यादा नहीं जानती।

जगमोहन

लेकिन उस दौर में जिन लोगों ने उन रिकार्ड्स को सुना होगा वो बता सकते हैं कि कैसे लोग उनकी आवाज़ को, उनके गीतों को पसंद करते थे। उनकी उस शोहरत को देखते हुए ही 1945 में ढाका के सारस्वत समाज ने उन्हें “सुर-सागर” की उपाधि से नवाज़ा। उनसे पहले ये उपाधि सिर्फ़ संगीतकार हिमांशु दत्त को दी गई थी और जगमोहन के बाद फिर किसी और को नहीं दी गई।

जगमोहन उन ख़ुशनसीब गायकों में से थे जिन्हें अपने शुरूआती दौर में रबिन्द्र संगीत को ख़ुद गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की देखरेख में गाने का मौक़ा मिला। ये किसी भी नए गायक के लिए एक बहुत बड़ी बात थी। बांग्ला में जगमोहन के गाए 2 लम्बे गीत उन दिनों बहुत मशहूर हुए थे, 1 – शाथती वोछोर आगे ओ पोरे, 2 – तुमि आज कौतो दूर। जगमोहन ने जिस फ़िल्म में पहली बार गीत गाया वो थी 1943 में आई “पापेर पाथे” (मधुकर सपने जाएगी कि बानी काय) इसकी रिकॉर्डिंग 1941 में हो गई थी।

लेकिन पहला गीत जिस फ़िल्म में सुनाई दिया वो थी 1942 में आई हिंदी फ़िल्म “भक्त कबीर” (अब राम भजे, राम नाम मुख बोल / मैं क्यों घर छोड़ूँ ) जगमोहन ने क़रीब 25 हिंदी फिल्मों में गीत गाए उनमें 1943 में आई न्यू थियेटर्स की “हॉस्पिटल”, 1945 में आई कीर्ति पिक्चर्स की “मेघदूत”,  1946 में आई “कृष्ण लीला”, और “ज़मीन आसमान” और 1949 में आई “ईरान की एक रात” के नाम लिए जा सकते हैं। 1945 में आई फिल्म “मेघदूत” में उनका गाया एक गाना बहुत पसंद किया गया था – “ओ वर्षा के पहले बादल”।

जगमोहन

इन सभी फ़िल्मों में संगीत कमलदास गुप्ता ने दिया था और गीत लिखे थे फ़ैयाज़ हाश्मी ने। इसी संगीतकार गीतकार जोड़ी के कई ग़ैर-फ़िल्मी गीतों को भी जगमोहन ने आवाज़ दी जो अपने समय में बेहद लोकप्रिय हुए और आज तक संगीत प्रेमियों के पसंदीदा हैं। 50 के दशक में बॉम्बे में जगमोहन की मुलाक़ात मशहूर निर्माता ज्ञान मुखर्जी से हुई। फिर उनकी फ़िल्म “सरदार” में जगमोहन ने संगीत दिया। इस फ़िल्म का गीत “प्यार की ये तल्ख़ियाँ” हफ़्तों तक बिनाका गीतमाला में टॉप पर रहा था।

जब जगमोहन युवा ही थे, उनके नाना जिन्हें वो बोरदा कहते थे यानी बड़ा भाई, वो गुज़र गए। उनकी मौत के बाद जगमोहन का संगीत से दिल ही उठ गया मगर उस समय काज़ी नज़रुल इस्लाम ने उन्हें समझाया कि इस दर्द को बचाकर रखो और अपनी आवाज़ से ज़ाहिर करो। शायद इसीलिए जगमोहन के गीत करुणा और दर्द में डूबे होते हैं। लेकिन सिर्फ़ यही उनकी ख़ूबी नहीं है उनकी असली ख़ूबी है उनका अपनी आवाज़ पर ज़बरदस्त कण्ट्रोल जिसकी वजह से उनका सुर कभी हिला नहीं और इमोशन कभी कम नहीं हुआ।

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जगमोहन ने महात्मा गाँधी के कहने पर एक भजन भी गाया था जो बहुत मशहूर हुआ। 3 सितम्बर 2003 को जगमोहन ने आख़िरी साँस ली। 5 दशकों के अपने करियर में उन्होंने बांग्ला के अलावा हिंदी, गुजराती और मराठी में रोमांटिक सांग्स के साथ साथ भजन, गीत, ग़ज़ल यानी हर शैली में लगभग 400 से ज़्यादा गीत रिकॉर्ड किए। इनमें रवींद्र संगीत के साथ-साथ नज़रुलगीती भी शामिल हैं।

जगमोहन

कहते हैं कि उनके गीतों की धूम US, ग्रेट ब्रिटेन और ईस्ट अफ्रीका तक थी। उन्होंने अपने अफ़्रीका टूर के दौरान दो महीनों में 58 प्रोग्राम दिए थे जो कि सुनने में ही इम्पॉसिबल लगता है मगर सच है। वहां लोग उन्हें “Magic Voice Of India” के नाम से पुकारते थे। वो पहले ऐसे भारतीय कलाकार थे जिन्हें नैरोबी की सभी कल्चरल सोसाइटीज़ ने सम्मानित किया। संगीत के क्षेत्र में उनकी रिसर्च के कारण कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने उन्हें इन्वाइट किया था। वो ब्रिटेन भी गए और कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया।

जगमोहन जहाँ भी जाते थे सुनने वालों पर जादू का सा असर छोड़कर आते थे। बहुत से अवार्ड्स और सम्मान उन्हें दिए गए, इनमें पद्मश्री जैसा सम्मान भी शामिल है जो उन्हें 1999 में दिया गया था। लेकिन उनके जैसे फ़नकार के लिए सबसे बड़ा सम्मान है “सुर-सागर” जो उनके नाम के साथ जुड़कर अमर हो गया। और उससे भी ख़ास बात ये है कि उनके बाद आज तक फिर किसी और को “सुर-सागर” की उपाधि नहीं मिल सकी।

जगमोहन बख्शी (सपन जगमोहन)

दूसरे जगमोहन का पूरा नाम है जगमोहन बख्शी। ये संगीतकार जोड़ी “सपन जगमोहन” वाले जगमोहन हैं जिनका जन्म 29 जुलाई 1929 को पंजाब में हुआ। सपन सेनगुप्ता का जन्म 17 जुलाई को सिलहट हैं हुआ। दोनों ही म्यूजिक से लगाव के कारण बम्बई आये और दोनों में दोस्ती हो गई और दोनों साथ ही एक किराए के कमरे में रहा करते थे। दोनों ही संगीतकार बनना चाहते थे और बाद में बने भी मगर संघर्ष के उस दौर में दोनों कोरस में गाया करते थे।

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SD बर्मन, सलिल चौधरी और नाशाद जैसे कुछ संगीतकार उन्हें काम दे दिया करते थे। जगमोहन बख्शी को गाने का पहला मौका मिला 1949 की फिल्म ‘नकली बाप’ में। इस फिल्म में उन्होने अभिनेता शेख मुख़्तार के साथ एक हास्य गीत (जीवन है जंजाल) गाया था। इस के बाद जगमोहन बख्शी ने 1952 की ‘छम छमा छम’, 1953 की ‘शमशीर’, 1954 की ‘Taxi Driver’, और ‘Hamlet’, 1956 में ‘ज़िंदगी’ और 1958 में ‘पिया मिलन’ में गीत गाये।

जगमोहन

मगर इनमें से कोई भी सोलो सांग नहीं था, लेकिन कुछ गाने उस समय मशहूर हुए। उनके मशहूर गानों में से एक था नवकेतन की फ़िल्म “टैक्सी ड्राइवर” का गीत, जिसमें उन्होंने आशा भोसले के साथ एक डुएट गाया जो फ़िल्म के हीरो-हेरोइन देवानंद और कल्पना कार्तिक पर फ़िल्माया गया था।

जगमोहन बख्शी के गाए कुछ गीतों की सूची

  1. टैक्सी ड्राइवर – देखो माने न रूठी हसीना
  2. ज़िंदगी – काली काली ये घटा
  3. हेमलेट (1954) – घिर-घिर आए बदरवा (मोहम्मद रफ़ी के साथ)
  4. पिया मिलन (1958) – ओ साथी रे तू आ भी जा (लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर के साथ)

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1949  से 1958 के बीच जगमोहन ने फ़िल्मों में सिर्फ़ 7 गाने गाए और इनमें से एक भी सोलो सांग नहीं था। इसके अलावा उन्होंने और क्या किया इसकी भी कोई जानकारी नहीं मिलती। लेकिन बाद में उनका नाम बतौर संगीतकार जोड़ी मिलता है “सपन जगमोहन” जिन्होंने पहली बार पंजाबी फ़िल्म “जीजाजी” में संगीत दिया। उनकी पहली हिंदी फ़िल्म थी 1963 में आई “बेगाना”, जिसका एक गाना “फिर वो भूली सी याद आई है” काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

जगमोहन

चेतना, दोराहा, कॉल गर्ल, सज्जो रानी, जैसी क़रीब 90 फ़िल्मों में इस जोड़ी ने म्यूजिक दिया। जिनमें 56 हिंदी, 18 पंजाबी और 16 बांग्ला फ़िल्में शामिल हैं। 26 फ़रवरी 1999 में जगमोहन ने इस दुनिया से विदा ली। इस जोड़ी की आख़िरी फ़िल्म “कुँवारी माँ” 1996 में आई थी। उनकी ज़्यादातर फ़िल्में या तो बी ग्रेड की थीं या कम बजट की जो बहुत कामयाब नहीं हुई जबकि उनके कुछ गीत बहुत ही बढ़िया थे। अगर सपन जगमोहन की सबसे मशहूर फिल्म की बात करें तो वो थी चेतना।

सपन

जगमोहन

सपन-जगमोहन  जोड़ी में जो सपन हैं, उनका पूरा नाम सपन सेनगुप्ता है, सपन चक्रबर्ती नहीं, जैसा कि कई बार समझ लिया जाता है। सपन चक्रबर्ती भी 70 के दशक के मशहूर गायक-संगीतकार थे, जिन्होंने कई मशहूर गीतों में अपनी आवाज़ दी।

  1. – प्रीतम आन मिलो – अँगूर
  2. – क़ायदा क़ायदा – ख़ूबसूरत
  3. – गोलमाल है भाई – गोलमाल

“गोलमाल” के टाइटल सांग में सपन चक्रबर्ती ने RD बर्मन के साथ गाया। वो RD बर्मन के सहायक थे और काफ़ी लम्बे समय तक उन्होंने पंचम के साथ काम किया। बाद में वो कोलकाता चले गए और वहाँ बांग्ला फ़िल्मों में बतौर संगीतकार काम करने लगे। स्वतंत्र रूप से उन्होंने कई हिंदी फ़िल्मों में भी संगीत दिया। इनमें 1973 की नया नशा, 1974 की 36 घंटे और जब अँधेरा होता है, 1975 की ज़मीर, और 1986 में आई एक रुका हुआ फ़ैसला में उन्होंने ही संगीत दिया था। इनमें सबसे मशहूर रही ज़मीर।