अमरनाथ नाम से शायद बहुत से फ़िल्म प्रेमी शायद एक संगीतकार को ही पहचानते हों पर अमरनाथ नाम की कई फ़िल्मी हस्तियाँ हैं।
अमरनाथ
फिल्म इतिहास में कई अमरनाथ और अमर नाम के एक्टर-सिंगर, फ़िल्ममेकर और म्यूज़िक डायरेक्टर मिल जाते हैं। मगर उनकी तस्वीर और जानकारी कई बार नहीं मिलती, मिलती भी है तो ग़लत। नाम किसी का होगा और तस्वीर किसी दूसरे ही शख़्स की लगाई गई होगी। तो इस पोस्ट में इन नामों पर और उन शख़्सियतों पर कुछ रौशनी डालेंगे।
पं. अमरनाथ चावला
अमरनाथ नाम के एक मशहूर शास्त्रीय गायक और संगीतकार हुए, उनका पूरा नाम था पं. अमरनाथ चावला। मूल रूप से पंजाब से ताल्लुक़ रखने वाले इन अमरनाथ के बारे में कहा जाता है कि ये उस्ताद अमीर ख़ाँ के पहले और सबसे करीबी शिष्य थे। क्लासिकल म्यूजिक में, ख़ासकर ख़याल गायकी में इनका बड़ा योगदान माना जाता है। उन्होंने बतौर संगीतकार आठ साल तक ऑल इंडिया रेडियो में भी काम किया। हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक होने के अलावा वो कवि और लेखक भी थे।
‘हंसा के बैन’ पुस्तक पंडित अमरनाथ चावला की हिंदी कविताओं का संग्रह है। फ़िल्मों की बात करें तो उन्होंने सिर्फ़ एक फिल्म में संगीत दिया वो थी राजिंदर सिंह बेदी की कहानी पर आधारित 1955 में आई “गरम कोट”। इसके अलावा उन्होंने कुछ डॉक्युमेंट्रीज़ में भी म्यूजिक दिया जिनमें मिर्ज़ा ग़ालिब पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री भी थी। फ़िल्मों से उनका और कोई सम्बन्ध नहीं रहा, लेकिन अक्सर उन्हें फ़िल्म संगीतकार पंडित अमरनाथ समझ लिया जाता है। जबकि ये दोनों अलग-अलग व्यक्ति थे।
पंडित अमरनाथ बातिश
शास्त्रीय गायक पंडित अमरनाथ का जन्म 22 मार्च 1924 में हुआ जबकि मशहूर फिल्म संगीतकार पंडित अमरनाथ का जन्म 1912 में जालंधर में हुआ। फ़िल्म संगीतकार अमरनाथ का का पूरा नाम था पंडित अमरनाथ बातिश जिन्होंने फ़िल्म संगीत में पंजाबी धुनों को बढ़ावा दिया। हुस्नलाल भगतराम जो पहली कामयाब फ़िल्म संगीतकार जोड़ी माने जाते हैं, वो इन्हीं के ही भाई थे। पं अमरनाथ बातिश को बचपन से ही एक्टिंग और सिंगिंग का शौक़ था, तबला और हारमोनियम भी बहुत अच्छा बजा लेते थे। शुरुआत में उन्होंने कुछेक स्टेज ड्रामा में भी काम किया।
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पंडित अमरनाथ बातिश ने एचएमवी में ऑर्केस्ट्रा डायरेक्टर के रूप में भी काम किया। मास्टर मदन, जिनकी प्रतिभा ने दुनिया भर को चौंका दिया था और जो बहुत कम उम्र में इस दुनिया से चले गए। उन्होंने भी पं अमरनाथ के निर्देशन में कुछ पंजाबी गाने रिकॉर्ड किए थे। बतौर संगीतकार इनका फ़िल्मी सफ़र शुरु हुआ 1942 की फ़िल्म “निशानी” से, जिसमें उन्होंने उस समय की मशहूर सिंगर नसीम अख़्तर से गाने गवाए।
लाहौर की मशहूर ज़ीनत बेगम को भी फ़िल्मों में लाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उन्होंने पहली बार 1942 में आई पंजाबी फ़िल्म गवांडी में ज़ीनत बेगम को गाने का मौक़ा दिया था। ये फ़िल्म व्ही शांताराम की फ़िल्म “पड़ोसी” का पंजाबी वर्ज़न थी। ज़ीनत बेगम ने पं अमरनाथ के संगीत निर्देशन में कई मशहूर फ़िल्मी और नॉन-फ़िल्मी गीत गाये। 1944 की फ़िल्म “दासी” में उन्होंने ज़ीनत बेगम के लिए ख़ासतौर पर एक गीत कंपोज़ किया था जो उस समय बहुत मशहूर हुआ।
“दासी” फिल्म से ही पंडित अमरनाथ एक जाना-माना नाम बन गए। ट्रेडिशनल, पंजाबी लोकगीतों पर आधारित धुनें पं अमरनाथ बातिश की ख़ासियत थीं। जिसकी झलक इरादा (44),पंछी (44), धमकी (45), कैसे कहूँ (45), रागिनी (45), शीरीं फ़रहाद (1945), शहर से दूर(46), शाम सवेरा (46), आई बहार(46), जैसी फिल्मों के संगीत में मिलती है। 40 के दशक में वो सबसे सम्मानित, व्यस्त और कामयाब संगीतकार थे और इसी दौर में उन्हें शराब की लत लगी जिसकी वजह से कई फ़िल्में भी उनके हाथ से निकल गईं।
जिस समय वो “मिर्ज़ा साहिबाँ” फिल्म का म्यूजिक कंपोज़ कर रहे थे, उसी दौरान उनका निधन हो गया, उस समय वो सिर्फ़ 35 साल के थे। उनका अधूरा काम पूरा किया उनके भाई हुस्नलाल भगतराम ने। 1947 में आई “मिर्ज़ा साहिबाँ” फिल्म के निर्देशक का नाम भी अमरनाथ ही था, और ये भी पंजाब से थे।
के. अमरनाथ
के. अमरनाथ का पूरा नाम था अमरनाथ गेलाराम खेत्रपाल, इनका जन्म 1 दिसंबर 1914 को पंजाब के मियाँवाली में हुआ। फ़िल्ममेकर के. अमरनाथ ने 1936 में अपनी पहली फ़िल्म “मतवाली जोगन” का निर्देशन किया था, उस वक़्त वो सिर्फ़ 21 साल के थे। के. अमरनाथ की गिनती अपने समय की बड़ी हस्तियों में की जाती है। 1952 में उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी खोली थी “के अमरनाथ प्रोडक्शंस”, वो सिर्फ़ प्रोडूसर डायरेक्टर नहीं थे बल्कि अपनी कई फ़िल्मों की कहानी और पटकथा भी उन्होंने ही लिखी।
के अमरनाथ की मशहूर फ़िल्मों में बाज़ार, बेक़सूर, लैला मजनू, अलिफ़ लैला, बारादरी, नया अंदाज़, कल हमारा है, बारात, इशारा और वो दिन याद करो के नाम लिए जा सकते हैं। फ़िल्मकार के अमरनाथ ने कई लोगों को पहले मौक़े भी दिए। उन्होंने ही हामिद अली नाम के युवक को बतौर हीरो अपनी फ़िल्म बेक़सूर में पेश किया और स्क्रीन नेम दिया – अजित, जो बाद में विलेन के रूप में मशहूर हुए।
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मशहूर राइटर एक्टर सलीम ख़ान को अभिनय का पहला मौक़ा देने वाले यही थे और वो फिल्म थी “बारात”। कैबरे क्वीन हेलन को उनका पहला सोलो डांस करने का मौक़ा भी के. अमरनाथ ने ही दिया था, वो फ़िल्म थी “अलिफ़ लैला”। वोकलिस्ट, म्यूजिक डायरेक्टर, फ़िल्ममेकर के अलावा अमरनाथ नाम के अभिनेता भी हुए, सिर्फ़ एक नहीं बल्कि कई अभिनेता थे।
अभिनेता अमरनाथ
अमरनाथ भारद्वाज
हिंदी फ़िल्मों में एक अमरनाथ भारद्वाज थे जो क़द-काठी में लम्बे और दिखने में बहुत हैंडसम थे। इन्होंने 100 से ज़्यादा फिल्मों में अभिनय किया। 40 के दशक के अंत में और 50 के दशक की शुरुआत में वो कई फ़िल्मों में बतौर हीरो नज़र आए जिनमें ज़्यादातर बी और सी ग्रेड की फिल्में थीं। लेकिन चरित्र कलाकार के रूप में उन्होंने कई ए ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया।
बतौर हीरो वो 1952 में गीता बाली के साथ “जौहरी” और बहू बेटी फ़िल्म में दिखे। श्यामा के साथ 1955 की हसीना और 1956 की बादशाह सलामत में नज़र आए। निम्मी के साथ दिखाई दिए 1954 की फ़िल्म डंका में, पूर्णिमा के साथ 1952 में आई फ़िल्म निर्मल में और बेगम पारा के साथ 1955 की फ़िल्म जलवा में वो करण दीवान के साथ दूसरे नायक के रूप में दिखाई दिए।
अमरनाथ मुखर्जी
11 सितम्बर 1933 को जन्मे बांग्ला कलाकार अमरनाथ मुखर्जी ने कई बांग्ला फ़िल्मों और टीवी सीरियल्स में काम किया। उन्होंने बांग्ला फ़िल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं इनमें सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है फ़िल्म मोचक में निभाया उनका किरदार। उन का निधन 25 मई 2023 को हुआ।
इन्होंने हिंदी फ़िल्मों में भी अच्छी भूमिकाएँ निभाई हैं, “अमानुष” से शुरुआत हुई और फिर “धन-दौलत”, “डिस्को-डाँसर” जैसी कुछ हिंदी फ़िल्में इन्होंने कीं। लेकिन हिंदी में जो रोल आज भी याद आता है, वो है फ़िल्म “ख़ूबसूरत” का। जिसमें उन्होंने राकेश रोशन के बड़े भाई का किरदार निभाया था। जिन्हें ताश खेलने का बहुत शौक़ था और वो माँ से छुप छुपकर ताश खेला करते थे।
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अमरनाथ नाम के एक तेलुगु अभिनेता भी हुए, उन्हीं की पोती हैं अभिनेत्री ऐश्वर्या राजेश। 1950 से 1960 के दरमियान तेलुगु अभिनेता अमरनाथ ने क़रीब 20 फ़िल्मों में हीरो की भूमिका निभाई। उन्होंने कुछ फ़िल्में प्रोड्यूस भी कीं, लेकिन वहाँ उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ा। कहते हैं वो बहुत ग़ुस्से वाले थे और उनका वो ग़ुस्सा ही उन्हें ले डूबा।
अमर – अभिनेता-गायक
पंजाब से एक और एक्टर सिंगर हुए जिनका फ़िल्मी नाम अमर था, उन्होंने अपने ज़माने की मशहूर हेरोइन रागिनी और सुरैया के साथ हीरो की भूमिका भी निभाई, मगर बतौर हीरो उनका फ़िल्मी सफ़र कोई बहुत ख़ास नहीं रहा। बतौर एक्टर-सिंगर उन्होंने 7 फ़िल्मों में 16 गीत गाए। और अपने पूरे फ़िल्मी सफ़र में उन्होंने 89 फ़िल्मों में अभिनय किया। 1920 में जन्मे अमर का असली नाम था नासिर, जिनकी शुरुआत फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल्स से हुई। 1945 में आई सन्यासी में उन्हें बड़ा ब्रेक मिला। इस फ़िल्म में उन्होंने 6 गाने गाए थे, 1 सोलो और बाक़ी डुएट।
1946 में आई बिंदिया में वो हीरो के रोल में दिखे और फिर बतौर हीरो कुछ फिल्में कीं जिनमें 1947 की नाटक भी शामिल है। इसमें उनकी जोड़ी सुरैया के साथ थी, जिनके साथ उन्होंने 2 गाने भी गाए और एक सोलो सांग भी गाया। 1970 तक वो फ़िल्मों से जुड़े रहे, और बाद के दौर में वो नेगेटिव रोल्स या चरित्र भूमिकाओं में नज़र आए। 1980 में उनका निधन हो गया।
अभिनेता – गायक अमर ने 7 फ़िल्मों में 16 गाने गाए
1942 – विजय
1944 – शुक्रिया
1945 – संन्यासी
1946 – बिंदिया
1946 – कीमत
1947 – नाटक
1950 – मांग
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4 एकल गीत
1. टूटी हुई कश्ती का बने कौन सहारा – ‘संन्यासी’ (1945)
2. मरने से क्या डरना – ‘बिंदिया’ (1946)
3. मन का पंछी शोर मचाये – ‘नाटक’ (1947)
4. भूल जा ऐ दिल वो बातें – ‘नाटक’ (1947)
अमर मलिक
ये है बांग्ला एक्टर-डायरेक्टर अमर मलिक, जिनका जन्म 1899 में हुआ था। वो भी एक पढ़े-लिखे सिविल इंजीनियर थे मगर नौकरी उन्हें रास नहीं आई। फ़िल्मों का शौक़ उन्हें न्यू थिएटर्स तक ले गया जहाँ उन्हें काम भी मिल गया। उस समय उन्होंने बांग्ला और हिंदी की कई फ़िल्मों में काम किया। उनकी महत्वपूर्ण फ़िल्मों में 1945 की भाबिकल, 1947 की फ़िल्म मंदिर, 1957 की मधुमालती, और 1966 की शुद्धो एकति बछर का नाम लिया जा सकता है।
वो अभिनेता के अलावा फिल्ममेकर भी थे, उन्होंने अमर मलिक प्रोडक्शंस की शुरुआत की और मशहूर निर्माता-निर्देशक के रुप में उभरे, 1972 में उनका निधन हो गया। वैसे इन दिनों भी आपको कई अमर नाम के अभिनेता दिख जाएँगे। पर जो ज़्यादा मशहूर हैं वो हैं अमर तलवार, अमर शर्मा और अमर उपाध्याय। पर इनके विषय में कोई उलझन नहीं है।