नाम एक फनकार अनेक

नाम एक फनकार अनेक इस सीरीज़ का ये पार्ट 2 है। पार्ट 1 में हमने बात की थी शशि कपूर, श्याम, श्याम सुंदर, और गौहर नाम वाली फ़िल्मी हस्तियों की। नाम एक फनकार अनेक पार्ट 2 में बात करेंगे भारतीय फ़िल्मों के राजकुमार और राजकुमारी की।

एक समय में भगवान के नाम पर नाम रखना बहुत आम हुआ करता था आज भी है, बस आजकल ज़रा यूनिक नाम ढूँढे जाते हैं। लेकिन कुछ नाम बहुत कॉमन होते हैं और हर युग में रखे जाते रहे हैं  जैसे राजू, पप्पू, बेबी, राज, राजा, रानी इन्हीं से मिलता जुलता नाम है राजकुमारी या राजकुमार। नाम एक फनकार अनेक इस सीरीज़ के दूसरे भाग में बात करते हैं राजकुमार और राजकुमारी नाम की हस्तियों को।

नाम एक फनकार अनेक – राजकुमारी

नाम एक फ़नकार अनेक इस सीरीज़ के इस पार्ट में पहले बात करते हैं उन गायिका अभिनेत्रियों की जिनका नाम राजकुमारी था। हिंदी फ़िल्मों में राजकुमारी का नाम आते ही हमें गायिका-अभिनेत्री राजकुमारी याद आती हैं। जिनका पूरा नाम था राजकुमारी दुबे। उस ज़माने में जब नेज़ल वॉइस चलन में थीं राजकुमारी दुबे की आवाज़ अपने दौर की दूसरी गायिकाओं से ज़्यादा मीठी और सॉफ्ट थी।

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राजकुमारी दुबे ने गायन में कोई ट्रैंनिंग नहीं ली थी, उसके बावजूद उस समय की लीडिंग रिकॉर्ड कंपनी HMV ने उन्हें 400 रुपए महीने की तनख्वाह पर बतौर सिंगर हायर किया था। जिस समय उनका पहला गाना रिकॉर्ड हुआ वो सिर्फ़ 10 साल की थीं। आमतौर पर ये माना जाता है कि प्रकाश पिक्चर्स के भट्ट भाई उन्हें फ़िल्मों में लेकर आए। लेकिन उससे पहले वो शोरी पिक्चर्स की फ़िल्म “राधेश्याम” में बतौर बाल कलाकार अभिनय कर चुकी थीं। लेकिन व्यस्क अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने पहली बार प्रकाश पिक्चर्स की फ़िल्म “नई दुनिया”(1934)  में काम किया।

राजकुमारी दुबे (बनारस वाली) की उन फिल्मों की सूची जिनमें उन्होंने प्रकाश पिक्चर्स के लिए काम किया।

  • 1934 – नई दुनिया
  • 1935 – बंबई की सेठानी
  • 1935 – बॉम्बे मेल
  • 1935 – लाल चिट्ठी
  • 1935 – शमशीर ए अरब
  • 1935 – आज़ाद वीर
  • 1936 – स्नेहलता
  • 1937 – चैलेंज

प्रकाश पिक्चर्स के अलावा उन्होंने सागर मूवीटोन, रणजीत स्टूडियो के साथ भी काम किया और उन फ़िल्मों में गीत भी गाये। बतौर गायिका-अभिनेत्री उन्होंने क़रीब 25 फ़िल्मों में अभिनय किया मगर बाद में बढ़ते वज़न के चलते उन्होंने सिर्फ़ सिंगिंग पर फ़ोकस करने का फैसला किया और अपने समय की कई मशहूर हेरोइंस के लिए प्लेबैक दिया और बहुत से यादगार गीत गाए। 

राजकुमारी दुबे का जन्म 9 फ़रवरी 1918 को बनारस में हुआ था इसलिए शादी से पहले वो बनारस वाली राजकुमारी के तौर पर जानी जाती थीं क्योंकि उसी दौर में कलकत्ता में भी राजकुमारी नाम की एक गायिका अभिनेत्री उभरीं हाँलाकि उनका असली नाम था पुल्लो बाई मगर फ़िल्मी पटल पर वो राजकुमारी के नाम से मशहूर हुई। उन्हें कलकत्तेवाली राजकुमारी के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने 1935 में आई K L सहगल की ‘देवदास’ में चंद्रमुखी की भूमिका निभाई थी।

राजकुमारी (कलकत्ते वाली) की फिल्मों की अनुमानित सूची

  • 1933 – आँख का नशा
  • 1933 – तुर्की शेर
  • 1934 – अनोखा प्रेम
  • 1934 – ग़रीब की दुनिया
  • 1934 – इन्साफ की टोपी
  • 1935 – देवदास
  • 1935 – डिवाइन सैक्रिफ़ाइज़
  • 1935 – जहाँआरा
  • 1935 – कारवां ए हयात
  • 1935 – मेरा प्यारा
  • 1935 – मिस मनोरमा
  • 1935 – वसंत प्रभा
  • 1935 – वामिक़ अज़रा
  • 1936 – आशियाना
  • 1936 – खड़कती बिजली
  • 1936 – करोड़पति (millionaire)
  • 1936 – पुजारिन
  • 1937 – मंदिर

कलकत्तेवाली राजकुमारी का फ़िल्मी सफ़र बहुत लम्बा नहीं रहा क्योंकि 40 के दशक की शुरुआत में ही शादी करके उन्होंने फ़िल्मी दुनिया से सन्यास ले लिया। 1938 में एक फ़िल्म आई थी “गोरख आया” इस फ़िल्म में दोनों राजकुमारी ने गाने गाये थे।

  1. तुम हो राजा मेरे मन के – गोरख आया (1938 ) – राजकुमारी कलकत्ते वाली
  2. वो दिन गए हमारे – गोरख आया (1938) – राजकुमारी दुबे, कल्याणी

नाम एक फनकार अनेक Part 2

राजकुमारी शुक्ला

इन दोनों के अलावा एक थीं राजकुमारी शुक्ला, जिनका जन्म 1903 में हुआ था। 1933 में वो मादन थिएटर में काम करने लगीं थीं। मूक फ़िल्मों से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत करने वाली राजकुमारी शुक्ला 40 का दशक आते आते चरित्र भूमिकाओं में नज़र आने लगीं। अपने समय में वो बेहद ख़ूबसूरत हुआ करती थीं और इमोशनल कैरेक्टर्स निभाने में बेमिसाल मानी जाती थीं। कुछ साइलेंट और 31 हिंदी फ़िल्मों में काम करने के अलावा, उन्होंने कुछ गुजराती और बंगाली फ़िल्मों में भी काम किया।

राजकुमारी शुक्ला की यादगार फ़िल्मों फ़िल्मों की सूची यहाँ दी गई है

  • 1941 – झूला
  • 1942 – धीरज
  • 1942 – एक रात
  • 1942 – फ़रियाद
  • 1942 – सोसायटी
  • 1942 – उलझन
  • 1943 – आगे कदम
  • 1943 – बदलती दुनिया
  • 1943 – दुल्हन
  • 1943 – गौरी
  • 1943 – हमारी बात
  • 1943 – नजमा
  • 1943 – नमस्ते
  • 1943 – पनघट
  • 1943 – पराया धन
  • 1943 – प्रेम संगीत
  • 1943 – संजोग
  • 1943 – स्कूल मास्टर
  • 1943 – वकील साहब
  • 1944 – आइना
  • 1944 – भाग्य लक्ष्मी
  • 1944 – डॉ. कुमार
  • 1944 – किरण
  • 1944 – माँ बाप
  • 1944 – मन की जीत
  • 1944 – रतन
  • 1945 – गुलामी
  • 1945 – हमारा संसार
  • 1945 – शरबती आंखें
  • 1945 – विलेज गर्ल
  • 1946 – नई माँ

राजकुमारी शुक्ला और राजकुमारी दुबे दोनों कुछ फ़िल्मों में एक साथ अभिनय करते हुए भी दिखाई दीं। लेकिन वहाँ भी राजकुमारी शुक्ला पर फ़िल्माए गीत राजकुमारी दुबे ने ही गाए। ऐसा कहा जाता है कि राजकुमारी शुक्ला ने सिर्फ़ एक गाना गाया था 1943 की फ़िल्म “पनघट” में, जिसके बोल थे – “चाची जी मेरे माथे के बीच में ” इस गीत में उनके अलावा बेबी तारा की आवाज़ भी है, इसके बाद उन्होंने किसी फ़िल्म में अपनी आवाज़ नहीं दी।

T R राजकुमारी

बम्बई और कलकत्ता फ़िल्म इंडस्ट्री के अलावा दक्षिण में भी एक राजकुमारी हुई। वो थीं मशहूर तमिल अभिनेत्री और गायिका “T R राजकुमारी”, उनका पूरा नाम था – तंजावूर रंगनायकी राजयी। इन्हें तमिल सिनेमा की पहली ड्रीम गर्ल कहा जाता है। “T R राजकुमारी” ने कुछेक हिंदी फ़िल्मों में काम किया था, इनमें 1948 की चंद्रलेखा के अलावा 1951 की जीवन तारा, 1954 की मनोहर, 1955 की राजकुमारी 1956 में आई “गुल ए बकावली” और 1958 की सुहाग शामिल हैं।

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5 मई 1922 में जन्मी “T R राजकुमारी” कम्पलीट पैकेज थीं वो कर्नाटक संगीत में माहिर थीं, शास्त्रीय नृत्य कर सकती थीं और अभिनय तो कमाल का था ही। उनके टैलेंट, ख़ूबसूरती और चार्म ने उन्हें तमिल सिनेमा की फर्स्ट ग्लैमर गर्ल का ख़िताब दिलाया।  ‘कच्छ देवयानी'(1941), ‘शिवकवि'(1943), ‘हरिदास'(1944),  ‘मनोनमणि'(1942), ‘वाल्मीकि'(1946), चंद्रलेखा'(1948), ‘कृष्ण भक्ति'(1949), ‘मनोहरा'(1954), ‘गुलेबकावली'(1955), और ‘थंगा पथुमई’ (1959), जैसी यादगार तमिल फ़िल्मों से जहाँ उनकी पॉपुलैरिटी बढ़ी वहीं सिनेमा जगत में उनका सम्मान भी बढ़ा।

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1963 में उनकी आख़िरी फ़िल्म आई वामनबाड़ी इस के बाद उन्होंने फ़िल्मों और लोगों दोनों से दूरी बना ली और एकांत जीवन जीने लगीं। तमिल सिनेमा की ये लेजेंड अभिनेत्री 20 सितम्बर 1999 को इस दुनिया से रुख़्सत हुईं। इन के अलावा दो नाम और मिलते हैं 1934 की फिल्म रामायण में राजकुमारी नायक और 1945 की फिल्म विलेज गर्ल में राजकुमारी कपूर। ये बहुत फ़ेमस नाम नहीं हैं और इनकी पहचान का भी कोई ज़रिया नहीं मिला,  हो सकता है ये सहायक कलाकार हों!

नाम एक फनकार अनेक – राजकुमार

नाम एक फ़नकार अनेक इस लिस्ट में जब राजकुमार नाम पर ग़ौर करते हैं तो कई नाम मिलते हैं। अभिनेता ही कई हैं और उनके अलावा प्रोडूसर-डायरेक्टर भी हैं और स्टंट मास्टर भी। हिंदी फ़िल्मों में एक ही राजकुमार मशहूर हैं जिनके साथ “जानी” जुड़ा हुआ है, और तरह- तरह की कहानियाँ भी। असल ज़िंदगी में उनकी बेबाक़ी और फ़िल्मी परदे पर उनकी डायलॉग डिलीवरी की कोई मिसाल नहीं है।

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“जानी” राजकुमार को हम हीर-राँझा, काजल, पाकीज़ा, मदर इंडिया जैसी कल्ट फ़िल्मों में देख चुके हैं। 8 अक्टूबर 1926 को बलूचिस्तान में जन्मे इन राजकुमार का असली नाम था कुलभूषण पंडित जो मुंबई में सब इंस्पेक्टर की नौकरी करते थे। अपनी नौकरी के दौरान जब वो एक सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने गए तो अभिनेता-निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की नज़र उन पर पड़ी।

नाम एक फनकार अनेक Part 2

सोहराब मोदी ने राजकुमार को एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव दिया लेकिन तब उन्होंने ये ऑफर रिजेक्ट कर दिया था। मगर क़िस्मत में तो लिखा था फ़िल्मों में अभिनय करना तो वो उन्हें फ़िल्मों तक खींच ही लाई। 1952 की फ़िल्म “रंगीली” में वो फ़िल्मी परदे पर नज़र आये और उनका फ़िल्मी नाम हो गया-राजकुमार। शाही आन-बान और शान-ओ-शौकत रखने वाले कुलभूषण ने शायद इसीलिए राजकुमार नाम रखा होगा क्योंकि उनके अंदाज़ में ही राजकुमारों वाला ठाट-बाट था।

इसी दौर में 4 और राजकुमार फ़िल्मों में थे, जिन्हें आपने देखा तो होगा पर शायद उनके नाम से वाक़िफ़ न हों। एक थे राजकुमार गुप्ता जो सिर्फ़ जाग्रति फ़िल्म में परदे पर दिखे इसके बाद कहाँ गए उनके बारे में किसी को कुछ नहीं पता। आपने सुना ही होगा “आउट ऑफ़ साइट आउट ऑफ़ माइंड” और फ़िल्मों में तो ऐसा बड़े-बड़े धुरंधरों के साथ हुआ है इन्होने तो सिर्फ़ एक ही फ़िल्म में काम किया था। राजकुमार गुप्ता की तरह एक राजकुमार पांडे भी थे जो 1958 की फ़िल्म माया बाज़ार में नज़र आए। लेकिन इसके अलावा उनके बारे में कोई और जानकारी उपलब्ध नहीं है।

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राजकुमार खत्री

चौथे राजकुमार वो थे जो फ़िल्म इंडस्ट्री में छोटा राजकुमार के नाम से जाने जाते थे। इनका पूरा नाम था राजकुमार खत्री और इनके फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत बतौर बाल कलाकार हुई। राजकुमार खत्री ने क़रीब 61 फ़िल्मों में काम किया, इनमें से ज़्यादातर धार्मिक पौराणिक फ़िल्में थीं और बाक़ी सोशल। उनके चेहरे में बच्चों जैसी मासूमियत और एक लड़कपन था, जो उन्हें दूसरे कलाकारों से अलग करता था। मगर शायद यही एक बात थी जिसकी वजह से उन्हें अच्छा अभिनेता होने के बावजूद हीरो के रोल्स नहीं मिले।

तुलसीदास (1954), संत तुकाराम (1955), गोस्वामी तुलसीदास(1964), बद्रीनाथ यात्रा (1967), माया मच्छिन्द्र (1975), हर हर गंगे (1979), चिंतामणि सूरदास (1988) जैसी धार्मिक-पौराणिक फ़िल्मों के अलावा राजकुमार खत्री ने सौतेला भाई, आज और कल, उस्तादों के उस्ताद, ज़िद्दी, नई उम्र की नई फ़सल जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय किया। 80 के दशक में उन्होंने अभिनय को अलविदा कह दिया और प्रकाश मेहरा के PA और असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम करने लगे। 2014 में उन्होंने आख़िरी साँस ली।

राजकुमार (कॉमेडियन)

इन सबसे पहले एक और राजकुमार थे जिनका जन्म 1916 में अमृतसर में हुआ था। उन्होंने अपना फ़िल्मी सफ़र मोहन नाम से शुरू किया था मगर अभिनेत्री राजकुमारी शुक्ला के कहने पर उन्होंने अपना स्क्रीन नेम राजकुमार रखा। उनकी पहचान एक कॉमिक एक्टर के तौर पर बनी। उनके फ़िल्मी सफर की शुरुआत 1939 में आई महबूब खान की फ़िल्म “एक ही रास्ता” से हुई, जिसमें उनका साइड रोल था। फिर वो “अलीबाबा” में भी दिखाई दिए मगर फिर कुछ मतभेदों के चलते उन्होंने सागर मूवीटोन छोड़ कर मोहन पिक्चर्स ज्वाइन किया, मगर उनका ये फैसला सही नहीं रहा।

इसके बाद उनका फ़िल्मी करियर काफ़ी उतार चढाव से गुज़रा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जिस दौर में स्टूडियोज़ का बोलबाला हुआ करता था उन्होंने बतौर फ्रीलांसर सफलता हासिल की। एक कॉमेडियन के रूप में वो घर की लाज, दुहाई, नौकर, शारदा, घर, पगली दुनिया, और कोशिश जैसी फ़िल्मों में दिखाई दिए। The राजकुमार के अलावा हिंदी फ़िल्मों के बाक़ी राजकुमार बतौर अभिनेता उतने मशहूर नहीं हुए लेकिन कन्नड़ अभिनेता डॉ राजकुमार दक्षिण भारतीय दर्शकों के बीच वही दर्जा रखते हैं जो हिंदी सिनेमा प्रेमियों में अमिताभ बच्चन का है।

डॉ राजकुमार

कन्नड़ रत्न डॉ राजकुमार को सिनेमा प्रेमी Emperor of Actors, Man of Gold, Gifted actor, Celestial singer, Rasikara Raja जैसे कितने ही नामों से पुकारते हैं। 1983 में पद्म भूषण और 1995 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित डॉ राजकुमार पार्श्व गायन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले एकमात्र प्रमुख अभिनेता हैं। उनकी 39 फिल्मों को 9 भाषाओं में 63 बार रीमेक किया गया है। इस तरह वो पहले अभिनेता हैं जिनकी फिल्मों को पचास से ज़्यादा  बार रीमेक किया गया है वो भी अलग-अलग भाषाओं में।

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वैसे राजकुमार उनका असली नाम नहीं है। उनका असली नाम है सिंगनल्लूरु पुट्टास्वामैय्या मुथुराज, फ़िल्म निर्देशक H. L. N. सिम्हा जिन्होंने उनके अंदर के कलाकार को पहचाना और उन्हें अपनी फ़िल्म में पहला मौक़ा दिया उन्होंने ही उन्हें नाम दिया राजकुमार जो बाद में डॉ राजकुमार कहलाये और कन्नड़ सिनेमा में एक किंवदंती बन गए।

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डॉ. राजकुमार के बारे में रोचक तथ्य

  • वो भारतीय फिल्म उद्योग में अभिनय के लिए डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाले पहले अभिनेता हैं। ये उपाधि उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय ने दी।
  • केंटकी कर्नल पुरस्कार पाने वाले वो एकमात्र भारतीय अभिनेता हैं। ये USA के केंटकी राज्य द्वारा दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है।
  • भारतीय फिल्म उद्योग में एकमात्र अभिनेता, जिनके नाम पर राज्य सरकार ने उनके जीवित रहते हुए एक पुरस्कार शुरू किया जो हर साल फिल्म उद्योग में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्ति को दिया जाता है।
  • डॉ. राजकुमार गायन और अभिनय दोनों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र अभिनेता हैं।
  • “दादा साहब फाल्के पुरस्कार” जीतने वाले वो पहले कन्नड़ अभिनेता थे। डॉ. राजकुमार और ऐसे एकमात्र अभिनेता, जिन्हें सरकार और दूसरी संस्थाओं द्वारा 10 से अधिक उपाधियाँ दी गईं। इनमें कर्नाटक रत्न, कन्नड़ कांतीरवा, कला कौस्तुभ, रसिकारा राजा, पद्मभूषण, नाटा सर्वभूमा, केंटुकी कर्नल, अन्नवरु, गण गंधर्व, निथ्या नूतन नट श्रेष्ठ, डॉक्टरेट शामिल हैं।
  • डॉ. राजकुमार भारतीय फिल्म उद्योग में अभिनय के लिए 9 राज्य पुरस्कार, 10 फिल्म फेयर पुरस्कार, गायन के लिए 2 राज्य पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र अभिनेता हैं।
  • डॉ राजकुमार वो एकलौते अभिनेता रहे जिन्होंने 1964 और 1968 के सालों में 14 – 14 फ़िल्मों में अभिनय किया।
  • अब तक की सबसे लंबे समय तक चलने वाली कन्नड़ फिल्म है बंगाराडा मनुष्या उस के हीरो थे डॉ राजकुमार। ये फ़िल्म बैंगलोर के एक थिएटर में 2 साल और 5 केंद्रों में 1 साल तक चली थी।

रेम्बो राजकुमार

रेम्बो राजकुमार नाम के स्टंट डायरेक्टर हुए हैं वो दक्षिण भारतीय फिल्मों के लीडिंग स्टंट डायरेक्टर्स में से थे। उनका नाम राजकुमार ही था लेकिन उनके रीयलिस्टिक क्लोज़ कॉम्बेट फाइट स्टाइल की वजह से उन्हें रेम्बो उपनाम दे दिया गया। क्योंकि इसी तरह का स्टंट्स स्टाइल रेम्बो फ़िल्म में था। उन्होंने तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और हिंदी की लगभग 500 फ़िल्मों में बतौर स्टंट मास्टर काम किया। उनका नाम फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी सम्मान के साथ लिया जाता रहा।

1990s में आई कई हिंदी फ़िल्मों में उन्होंने बतौर स्टंट डायरेक्टर काम किया ख़ासकर मिथुन चक्रबर्ती की बहुत सी हिंदी फ़िल्मों में वो स्टंट डायरेक्टर थे। 2013 में शाहिद कपूर की एक फ़िल्म आई थी R राजकुमार उसका नाम पहले रेम्बो राजकुमार के नाम पर ही रखा गया था। बाद में कॉपीराइट इशू की वजह से उसे बदला गया।

आजकल की बात करें तो हिंदी फ़िल्मों के पास हैं राजकुमार राव। चार फिल्मफेयर अवॉर्ड्स और शाहिद (2013) के लिए नेशनल अवॉर्ड पाने वाले राजकुमार राव एक ऐसे अभिनेता हैं जो हर रोल में बड़ी ही सहजता से ख़ुद को ढाल लेते हैं। trapped, बरेली की बर्फ़ी, न्यूटन, स्त्री, मेड इन चाइना, लूडो जैसी फ़िल्मों में उनके अभिनय का कमाल देखा जा सकता है।

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नाम एक फ़नकार अनेक की लिस्ट में सिर्फ़ अभिनेता ही शामिल नहीं हैं बल्कि प्रोडूसर-डायरेक्टर भी हैं जिन में भी राजकुमार नाम बहुत कॉमन है। घायल दामिनी, अंदाज़ अपना अपना, पुकार, लज्जा, अजब प्रेम की गजब कहानी जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक का नाम है राजकुमार संतोषी। जो अपने ज़माने के मशहूर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और गीतकार पी एल संतोषी के बेटे हैं। मुन्ना भाई MBBS, लगे रहो मुन्ना भाई, 3 इडियट्स जैसी सुपर हिट फिल्में देखते ही उन्हें बनाने वाले डायरेक्टर का नाम ज़हन में आ जाता है – राजकुमार हिरानी।

नाम एक फनकार अनेक Part 2

एक हैं राजकुमार कोहली जिन्होंने 1973 की नागिन, फिर जानी दुश्मन, नौकर बीवी का, राजतिलक जैसी कई  मल्टीस्टारर और हिट फिल्मों का निर्देशन किया। साथ ही कुछ हिंदी और पंजाबी फिल्मों का निर्माण भी किया। आमिर, नो वन किल्ड जेसिका जैसी क्रिटिकली acclaimed फ़िल्मों का निर्देशन जिन्होंने किया उनका नाम भी राजकुमार ही है -राजकुमार गुप्ता। हिंदी के अलावा तमिल सिनेमा के एक फिल्म डायरेक्टर और स्क्रीन राइटर हैं राजकुमार पैरियासामी जिनकी डेब्यू फ़िल्म आई 2017 में रंगून, जो तमिल भाषा की क्राइम मूवी है।

तो देखा न आपने कितना कॉमन नाम है राजकुमार, आज तो हम फिर differentiate कर पा रहे हैं, वो भी शायद इसलिए क्योंकि आज सबकुछ पब्लिक प्लेटफॉर्म पर है। सोशल मीडिया ने बहुत कुछ आसान कर दिया है जहाँ  सिर्फ़ एक्टर-सिंगर्स ही नहीं हैं बल्कि प्रोडूसर-डायरेक्टर, और फ़िल्मों से जुडी दूसरी बहुत सी हस्तियां मौजूद हैं।  मगर confusion उस दौर का है जिसके बारे में आज ज़्यादा प्रमाण नहीं मिलते, इसी वजह से किसी का क्रेडिट किसी दूसरे के हिस्से में चला जाता है।